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छत्तीसगढ़ राज्य के 10 प्राचीन मन्दिर और उसके इतिहास, आस्था व वास्तुकला कि एक झलक जो इन मन्दिरों व आस्था से जुडी है | छत्तीसगढ़ राज्य वह स्थान है, जहां प्रकृति कि सुन्दरता व प्राचीन संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है, यहाँ पर इनके प्राचीन मंदिरों में छुपी है इतिहास की अमूल्य धरोहर। ये केवल बस मन्दिर मात्र नही बल्कि धार्मिक आस्था का भी प्रतीक हैं |

ताला ग्राम के देवालय जिला बिलासपुर

माता दंतेश्वरी मन्दिर , बारसूर

माता दंतेश्वरी छत्तीसगढ़ की कुलदेवी मानी जाती हैं, सबसे ज्यादा मान्यता बस्तर अंचल में। यह मंदिर बारसूर, जो प्राचीन काल में बस्तर की राजधानी थी, वहां पर स्थित है। मन्दिर की स्थापना 13वीं शताब्दी में नागवंशी राजाओं द्वारा की गई थी, ऐसा माना जाता है | यह मंदिर स्थानीय मान्यताओं के अनुसार,52 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है | जहाँ देवी सती के दांत गिरे थे, इसलिए उन्हें दंतेश्वरी कहा जाता है।

माता दंतेश्वरी मन्दिर पत्थरो से बना हुआ है और इसकी शिल्पकला अद्भुत है, मंदिर कि दीवारों पर देवी देवताओ व पशु पक्षियों, मानव और कलात्मक चित्र कि नक्काशी कि गयी है | इस मंदिर में माता दनेश्वरी कि मूर्ति शुद्ध काले पत्थर से बनी है जो अत्यंत प्राचीन है | व मंदिर के अन्दर शिवलिंग और अन्य देवी देवताओ कि भी मुर्तिया वहा पर स्थित है |

दशहरा यहाँ का प्रमुख त्योहार है जिसमे बस्तर से हजारो श्रद्धालु  माता माता दंतेश्वरी के दर्शन के लिए दूर दूर से आते है | नवरात्रि में माता दंतेश्वरी व पुरे मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है व पुरे झेत्र में भक्ति कि लहर दौड़ जाती है | यहाँ के स्थानीय लोग हर शुभ काम कि शुरुआत माँ दंतेश्वरी के आशीर्वाद से ही करते है |

बारसूर को एक हजार मंदिरों का नगर भी कहते है यहाँ पर छोटे बड़े और भी कई एतिहासिक मंदिर मौजूद है | मंदिर का शांत वातावरण व चारो ओर हरियाली पर्यटकों को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है | इतिहास और पुरानी संस्कृति में रूचि रखे वालो के लिए यह स्थल एक शोध का स्थान है |

माता दंतेश्वरी मंदिर, बारसूर का यह स्थान  केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत का गौरव है।

शिवरीनारायण मन्दिर , जांजगीर-चांपा

दंतेश्वरि मन्दिर , दंतेवाड़ा

दंतेवाड़ा का नाम ही दंतेश्वरी देवी के नाम पर पड़ा है। यह मंदिर माँ दंतेश्वरी को समर्पण है, जो बस्तर की कुलदेवी मानी जाती हैं। पुरानी मान्यता के अनुसार, जब माता सती का शरीर भगवान शिव के त्रिनेत्र से प्रकट अग्नि में जल गया, तब शिवजी ने उनका शव उठाकर तांडव किया। इस दौरान जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। माना जाता है कि माता सती का दांत यहाँ गिरा था, इसी कारण इस स्थान को दंतेवाड़ा कहा गया और देवी कि इस मन्दिर को दंतेश्वरी मन्दिर  कहा जाने लगा।

दंतेश्वरी मन्दिर 13वीं शताब्दी में छिंदक नागवंशी राजाओं द्वारा निर्मित कराया गया। मन्दिर की स्थापना कला और नक्काशी बस्तर क्षेत्र की जनजातीय संस्कृति और कारीगरी का सुन्दर उदाहरण है। मन्दिर का वर्तमान स्वरूप काले ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित है,मन्दिर की संरचना चार भागों में विभाजित है: गर्भगृह, महामंडप, मूख्यमंडप, और सभामंडप।

 माता दंतेश्वरी देवी की प्रतिमा काले पत्थर से बनी हुई है और यह अत्यंत प्रभावशाली है। मन्दिर के स्तम्भों और दीवारों पर सुंदर जनजातीय कलाकृतियाँ और धार्मिक चित्र  देखने को मिलते हैं। यहाँ एक भव्य दीप स्तंभ भी है जो मंदिर की शोभा को और बढ़ाता है।

बस्तर दशहरा यहाँ का सबसे प्रसिद्ध उत्सव है, जो लगभग 75 दिनों तक चलता है। यह भारत का सबसे लंबा दशहरा महोत्सव माना जाता है। नवरात्रि, रामनवमी, श्रावण मास, और महाशिवरात्रि पर भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।

बस्तर के राजा भी दशहरा के दौरान यहाँ पूजा करते हैं, जो आज भी परंपरा के रूप में जीवित है। मंदिर की भव्यता और दिव्यता यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आध्यात्मिक सुख देती है। नजदीक ही शंखिनी और डंकिनी नदियों का संगम है, जिसे पवित्र माना जाता है।

मंदिर परिसर में जनजातीय संस्कृति की झलक, लोककला और मान्यताओं का अनुभव भी मिलता है। दंतेश्वरी मंदिर, दंतेवाड़ा सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति, आस्था और इतिहास का प्रतीक है। यहाँ हर वर्ष लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन करने आते हैं।यदि आप छत्तीसगढ़ के शक्ति स्थलों, आदिवासी संस्कृति और आध्यात्मिक स्थलों के बारे में जानने में रूचि रखते है तो आपको यहाँ एक बार जरुर जाना चाहिए |

चंद्रखुरी स्थित कौशल्या माता मन्दिर (रायपुर के पास)

राजीव लोचन मन्दिर , राजीम

छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद जिले में स्थित राजीम को ‘छत्तीसगढ़ का प्रयाग’ कहा जाता है। यहाँ महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों का संगम होता है। संगम तट पर ही स्थित है राजीव लोचन मंदिर, जो भगवान विष्णु को समर्पित है और छत्तीसगढ़ के प्रमुख धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों में से एक है।

राजीव लोचन मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में कलचुरी शासक महाराजा भोंजदेव प्रथम ने करवाया था। यह मंदिर लगभग 1200 वर्ष पुराना है और इसकी स्थापना कला गुप्त व कलचुरी काल की मिश्रित शैली को दर्शाती है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की राजीव लोचन रूप में मूर्ति विराजमान है।

मंदिर पंचरथ शैली में बना है, जिसमें उन्नत शिखर और सुंदर नक्काशीदार स्तंभ हैं। मन्दिर के प्रवेश द्वार पर गरुड़ स्तंभ और द्वारपाल की मूर्तियाँ विराजमान हैं। मंदिर के चारों तरफ 12 छोटे मन्दिर हैं, जिनमें राम, लक्ष्मण, जानकी, नरसिंह, वराह आदि विष्णु के अवतारों की मूर्तियाँ स्थापित हैं।

पत्थरों पर बनाई गयी आकृतियाँ, देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और शिलालेख इस मन्दिर  को प्राचीन दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बनाते हैं। यह मन्दिर भगवान विष्णु के राजीव लोचन स्वरूप को समर्पित है, जो कमल-नयन होने के कारण “राजीव” कहे जाते हैं।

यह स्थान छत्तीसगढ़ के प्राचीन पंचकोशी तीर्थ का हिस्सा है। यहाँ हर वर्ष राजीम मेला (फरवरी-मार्च) में लगता है, जहा लाखों श्रद्धालु यहाँ पूजा,अर्चना और स्नान के लिए आते हैं। यह मेला धार्मिक, सांस्कृतिक और लोककला का अद्भुत संगम होता है।

यहाँ पर दो महानदी, पैरी, और सोंढूर नदी का त्रिवेणी संगम यहाँ होता है, जिससे इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है। माघ पूर्णिमा के दिन संगम स्थल पर स्नान को पवित्र माना जाता है |

राजीव लोचन मंदिर, राजीम सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और वास्तुकला का प्रतीक है। यहाँ कीशान्ति, पवित्रता और आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति प्रदान करता है। यदि आप छत्तीसगढ़ घुमाने जा रहे रहे हैं, तो यह तीर्थस्थल आपके यात्रा का एक भाग अवश्य होना चाहिए।

महामाया मन्दिर रतनपुर

गंधेश्वर मन्दिर , सिरपुर

गंधेश्वर मंदिर का निर्माण 8-10वीं शताब्दी के बीच माना जाता है, जब सिरपुर सारभपुरी और सोमवंशी शासकों की राजधानी हुआ करता था। सिरपुर को ‘श्रेष्टपुर’ के नाम से भी जाना जाता था और यह स्थान बौद्ध, जैन और हिंदू संस्कृति का संगम था। गंधेश्वर मंदिर उन धार्मिक स्थलों में से है, जो सिरपुर के गौरवशाली अतीत की गवाही देते हैं।

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में स्थित सिरपुर नगरी, प्राचीनकाल में एक समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र रही है। इसी सिरपुर में स्थित है गंधेश्वर मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है और अपनी अनोखी कला, इतिहास,विरासत और आध्यात्मिक वातावरण के लिए प्रसिद्ध है।

मंदिर में भगवान शिव की पूजा “गंधेश्वर” नाम से होती है, जिसका अर्थ है – “सुगंधित ईश्वर”। यहाँ का शिवलिंग प्राचीन और जागृत माना जाता है, और इसे गंधयुक्त भस्म से अभिषेक करने की परंपरा है।मन्दिर  का निर्माण पुराने खंडहरों और मूर्तियों से किया गया है, जिसमें बौद्ध और जैन स्थापत्य शैली की झलक मिलती है। मन्दिर के दरवाजे पर स्थापित नंदी की मूर्ति  द्वारपाल और मन्दिर की दीवारों पर बनी गंधर्व, देवी-देवताओं और भूत-प्रेतों की आकृतियाँ इसे अनोखा बनाती हैं।

यहाँ के मन्दिर के पास से महानदी बहती है, जिससे यह स्थान अत्यंत शांत और पवित्र महसूस होता है।गंधेश्वर मन्दिर सिरपुर का प्रमुख शैव तीर्थस्थल है।यहाँ पर विशेष रूप से महाशिवरात्रि, श्रावण मास, और सोमवारों को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है।

शिवभक्त यहाँ रुद्राभिषेक, जलाभिषेक और मंत्रोच्चार के साथ पूजा करते हैं।गंधेश्वर मन्दिर, सिरपुर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पहचान का जीता जगाता प्रतीक है। यदि आप भगवान शिव के भक्त हैं, या इतिहास व वास्तुकला में रुचि रखते हैं, तो गंधेश्वर मंदिर की यात्रा आपके लिए अविस्मरणीय अनुभव होगी।

लक्ष्मण मन्दिर , सिरपुर

लक्ष्मण मन्दिर छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में स्थित  सिरपुर में स्थित है लक्ष्मण मंदिर, भारत के सबसे प्राचीन और सुन्दर  विष्णु मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मन्दिर अपनी उत्कृष्ट ईंट से निर्मित वास्तुकला, ऐतिहासिक महत्व और धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है। सिरपुर कभी प्राचीन काल में “श्रेष्टपुर” नाम से जाना जाता था और यह स्थान बौद्ध, जैन और वैष्णव धर्मों का बड़ा केंद्र था।

लक्ष्मण मन्दिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में हुआ था। इस मन्दिर को सत्यभामादेवी ने अपने पति महान सोमवंशी राजा हर्षगुप्त की याद में बनवाया था। यह मन्दिर भगवान विष्णु को समर्पित है, लेकिन इसका नाम “लक्ष्मण मन्दिर” इसलिए पड़ा क्योंकि इसे धार्मिक श्रद्धा के रूप में बनवाया गया था, न कि किसी विशेष मूर्ति के कारण।

यह मंदिर पूरी तरह से ईंटों से बना है,व इस मन्दिर को  भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्राचीन ईंट मन्दिर माना जाता है। मन्दिर  नागर शैली में बना है, जिसमें सुंदर द्वार, मंडप, गर्भगृह और उन्नत शिखर हैं। प्रवेश द्वार पर नारायण, लक्ष्मी, गजलक्ष्मी, गंगा-यमुना, द्वारपाल, और मिथुन मूर्तियाँ शानदार तरीके से उकेरी गई हैं।

मन्दिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की मूर्ति थी, जिसे अब रायपुर संग्रहालय में संरक्षित किया गया है।यह मन्दिर छत्तीसगढ़ का प्रमुख वैष्णव तीर्थ माना जाता है।इस मन्दिर कि अद्भुत वास्तुकला और धार्मिक विरासत के कारण इसे भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।

सिरपुर क्षेत्र में यह मन्दिर  हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों की साझा धरोहर का प्रतिनिधित्व करता है।लक्ष्मण मन्दिर, सिरपुर न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि सम्पूर्ण भारत की प्राचीन स्थापत्य विरासत का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मंदिर वैष्णव परंपरा, ईंट निर्माण कला, और सांस्कृतिक सम्पन्नता का प्रतीक है। अगर आप धार्मिक आस्था, इतिहास और वास्तुकला में रुचि रखते हैं, तो लक्ष्मण मन्दिर की यात्रा अवश्य करें, यह अनुभव आपको प्राचीन भारत की गहराइयों से जोड़ देगा।

भोरमदेव मन्दिर जिला कबीरधाम

भोरमदेव मन्दिर छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में स्थित भोरमदेव मन्दिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन और कलात्मक मन्दिर है। इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है, क्योंकि इस मन्दिर की दीवारों पर बनी मूर्तियाँ और शिल्प कलाएं खजुराहो के मन्दिरों की याद दिलाती हैं। यह मन्दिर  प्रकृति की गोद में  सतपुड़ा की पहाड़ियों और हरियाली से घिरा हुआ है, जो इसे और भी अधिक सुन्दर बनाता है।

भोरमदेव मन्दिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में नागवंशी शासक गोपालदेव द्वारा करवाया गया था। यह मन्दिर  नागर शैली की वास्तुकला में बना है | मन्दिर का नाम भोरमदेव स्थानीय आदिवासी देवता भोरम बाबा के नाम पर पड़ा है, जिन्हें भगवान शिव का ही एक रूप माना जाता है।

मन्दिर में स्थापित शिवलिंग को ‘भोरमदेव महादेव’ के नाम से पूजा जाता है।यह मंदिर पत्थरों से बना हुआ है, और इसकी दीवारों पर मानव आकृतियाँ, कामकला, देवी-देवताओं, नर्तकियों, पशु-पक्षियों आदि की नक्काशियाँ बेहद जीवंत और कलात्मक हैं।

मन्दिरों का शिखर, मंडप, गर्भगृह और स्तंभ पूरी तरह से शास्त्रीय भारतीय वास्तुकला का अनुकरण करते हैं।भोरमदेव मन्दिर छत्तीसगढ़ के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है। यहाँ पर महाशिवरात्रि व श्रावण मास, और अन्य पर्वों पर विशेष पूजा, मेले और रुद्राभिषेक होते हैं।

स्थानीय लोन इस मन्दिर को अपना आराध्य स्थल मानती हैं और पीढ़ियों से यहाँ पूजा करती आ रही हैं। भोरमदेव मन्दिर, न केवल छत्तीसगढ़ का एक धार्मिक स्थल है बल्कि यह राज्य की संस्कृति, कला और पुरातत्व का अनमोल रत्न भी है। इसकी दीवारों पर बनाई गई मूर्तियाँ, शांत वातावरण और प्राकृतिक सुन्दरता इस स्थान को  छत्तीसगढ़ के सर्वोत्तम पर्यटन स्थलों में से एक बनाते हैं। यदि आप कभी कबीरधाम या आसपास के क्षेत्रों की यात्रा करें, तो भोरमदेव मंदिर को देखे बिना यात्रा अधूरी मानी जाएगी।

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